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चित्त जहाँ भय-विहीन /व्याख्या / Chitt jahan Bhay vihin Poem Explanation

Duration: 14:29Views: 3KLikes: 94Date Created: Apr, 2022

Channel: Alpana Verma

Category: Education

Tags: class 12 hindij&k boardalpana vermaclas 9 hindijansanchar madhyamhindi kavitaessay hindihindi nibandhantraantraluttarakhand boardhindi storycbsehindi grammarharyana boardhindi vyakranncert hindi lectureskritikancertclass 11 hindiaarohkshitijalpana verma hindi class 10up boardsparshअल्पना वर्मा हिंदीhindi classsanchayanvitan

Description: चित्त जहाँ भय- विहीन /व्याख्या /Chitt jahan Bhay vihin Poem Explanation @3:00 English translation @4:33 Word meaning and @9:30 Explanation of the poem(Hindi) चित्त जहाँ भय शून्य, शीश जहाँ उच्च है ज्ञान जहाँ मुक्त है, जहाँ गृह –प्राचीरों ने वसुधा को आठों पहर अपने आँगन में छोटे-छोटे टुकडें बनाकर बंदी नहीं किया है जहाँ वाक्य उच्छ्वसित होकर हृदय के झरने से फूटता जहाँ अबाध स्रोत अजस्र सहस्र विधि चरितार्थता में देश-देश और दिशा दिशा में प्रवाहित होता है जहाँ तुच्छ आचार का फैला हुआ मरुस्थल विचार के स्रोत पथ को सोखकर पौरुष को विकर्ण नहीं करता सर्व कर्म चिंता और आनन्दों के नेता जहाँ तुम विराज रहे हो हे पिता, अपने हाथ से निर्दय आघात करके भारत को उसी स्वर्ग में जागृत करो ! (भवानी प्रसाद मिश्र) ============ जहां चित्‍त भय से शून्‍य हो जहां हम गर्व से माथा ऊंचा करके चल सकें जहां ज्ञान मुक्‍त हो जहां दिन रात विशाल वसुधा को खंडों में विभाजित कर छोटे और छोटे आंगन न बनाए जाते हों जहां हर वाक्‍य ह्रदय की गहराई से निकलता हो जहां हर दिशा में कर्म के अजस्‍त्र नदी के स्रोत फूटते हों और निरंतर अबाधित बहते हों जहां विचारों की सरिता तुच्‍छ आचारों की मरू भूमि में न खोती हो जहां पुरूषार्थ सौ सौ टुकड़ों में बंटा हुआ न हो जहां पर सभी कर्म, भावनाएं, आनंदानुभुतियाँ तुम्‍हारे अनुगत हों हे पिता, अपने हाथों से निर्दयता पूर्ण प्रहार कर उसी स्‍वातंत्र्य स्‍वर्ग में इस सोते हुए भारत को जगाओ. (शिवमंगल सिंह "सुमन") ======== Video lesson prepared and presented by Alpana Verma

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